जब रेस दिन के उस वक्त शुरू हो जिस वक्त सूरज सर पे आकर बेहोशी का एहसास कराए तब समझ जाओ अंडर ग्राउंड होने का समय आ गया है। एक तरफ रनर्स ऐसे दौड़ है जैसे कुत्ते ने बाईट लिया हो दूसरी तरफ सूरज ऐसे गायब हो गया धरातल से जैसे अकॉउंट में आई सैलरी।
फ़ोटो जैसलमेर से 80किमी दूर का जहाँ वोलंटियर बैठे हैं और सोच रहे कि लकड़ी तो 8 बजे ही खत्म हो गयी अब रात की भीषण ठंड में जिंदा रहने के लिए डिप्स मार लूँ या बीड़ी लेने 25 किमी दूर चला जाऊं?। आपका क्या कहना है कि ठंडी रातें कैसे बितानी चाहिए?।
मेरे ख़याल से शिवरिंग का बहाना दे के, क़तई नवेले की तरह सो जाना चाहिए 🤭
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