Thursday, November 24, 2022

लोहाजंग, उत्तराखंड

जब जब बर्फ गिरी तब तब हम बाहर मिले, सुगंध से उसकी कदम कदम पे फूल खिले, तैरता आंखों में मैं इश्क लापरवाह बना, उलझकर उंगलियों में मैं बेशकीमती हुआ, पैर कभी बर्फ पे पड़ते कभी दिल पे मेरे, चर्चे जंगलों में बेइंतहा हुए तेरे, "जाना होगा अब" कहकर उन्होंने केशू खोल दिये, "हाय मैं मर जावां" बोलकर हम सबकुछ भूल गए, "मत जाओ तुम... हम पार पहाड़ के जायेंगे" बुग्यालों में बैठकर खुमानी खूब खायेंगे, सवाल मेरे सतत खड़े हैं तेरे सामने, मुर्शिद मेरे मत देना जवाब बस मुझे तू थामले।



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