उधर हम चम्बा से चलकर लाहौल पहुंचे थे इधर जोतनू और कुगति जोत चढ़ने में ही हम बुजुर्ग हो गए। त्रिलोकीनाथ और माता मृकुला के दर्शन करके अब अपने को जाना था चन्द्रताल , जहां पहुंचने के लिए हम पैदल चले, बकरियों की लीद से भरे ट्रक में पड़े रहे, सीमेंट के ट्रक में सने रहे, लाहौली वैन से लिफ्ट और अंत में लाल सेंट्रो की मदद से चन्द्रताल पहुंचे।
"खाना प्रति व्यक्ति 300 रुपये है" बस यही सुनने तो हम आये थे इतना लंबा रास्ता तय करके। जिसपर शांतिप्रिय जोगटा जी वीर रस के कवि टाइप बन गए "अब बोले तो बोलें क्या, जाए तो जाए कहाँ"। . आपने कभी टॉफी खाकर रातें बितायी हैं?
Post a Comment