5 किमी. चलकर, बीसियों होटल ढूंढकर आखिरकार रात 12:30 बजे कमरा मिला, कुम्भ के चक्कर में भारी रकसैक ने कंधों का नाश कर दिया। एक बजे डिनर करके दो बजे सोया। सुबह रूम 9 बजे छोड़ा और निकलते ही अलखनाथ अखाड़े के साधु दिखे...फिर क्या था मैं उनके साथ ही हो लिया हर की पौड़ी तक। . एक महात्मा ने पूछा था "नागा बनोगे?", मैं: क्या करना होता है? महात्मा: कुंडा पहनना होता है। मैं: धन्यवाद, मेरे तो लव चार्जर गुरु हैं।
दोपहर दो बजे होश आया कि ना नाश्ता किया ना लंच ऊपर से जिस होटल में रुका था उसका नाम और पता दोनों भूल गया..."मुझे घर जाना है" टाइप फिलिंग आ गयी बाय गॉड। डेढ़ घण्टे तक घाट-घाट का पानी पीकर आखिरकार होटल मिला फिर खाना मिला। क्या आप भी कभी जिस होटल में रुके हो उसका नाम पता भूले हो?।
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